मनोरंजक कथाएँ >> चम्पा का राजकुमार चम्पा का राजकुमारदिनेश चमोला
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चम्पा के राजकुमार की कहानी
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
चम्पा का राजकुमार
चम्पा प्रदेश का राजकुमार था- हेमन्त। सभी उसे फूलों के राजकुमार के नाम
से जानते थे। जितना उसकी वाणी में जादू था, उतना ही वह सुन्दर भी था।
हेमन्त के पिता चम्पावत का बहुत लम्बा-चौड़ा साम्राज्य था।
समय बीता। धीरे-धीरे राजकुमार हेमन्त बड़ा होने लगा। महारानी फूली न समाती। देवदासियाँ राजकुमार को झुला-झुलाकर खुद मस्ती से झूला झूलतीं।
महाराज चम्पावत अत्यन्त वृद्ध हो चले थे। एक दिन जब उन्हें लगा कि अब वह अधिक जीवन नहीं जी सकते तो उन्होंने राजकुमार को पास बुलाया और प्रेम से कहा- ‘‘बेटा ! अब मैं दूसरे लोक चला जाऊँगा। तुम अभी छोटे हो। सभी से न्याय और प्रेम का व्यवहार करना। हमारे राज्य में कभी भी प्रजा दुखी नहीं रही.....प्रजा भगवान का रूप होती है। कभी राज्य में संकट पड़े तो फूलों की देवी का ध्यान करना.....।’’
‘‘पिताजी ! मैं छोटा नहीं हूँ....मैं तो चम्पा प्रदेश का राजकुमार हूँ.....आप निश्चिन्त रहें....देवदासियों और स्वर्णपरियों का बहुत बड़ा समूह सदा मेरे साथ रहता है......मैं कभी भी महाराज के आचरणों का उल्लंघन नहीं कर सकता....।’’
एक दिन राजकुमार शिकार करने जंगल गया तो रास्ता भटक गया। कई दिनों तक राजमहल न लौट सका। इधर महाराज चम्पावत स्वर्ग सिधार गए। हेमन्त लौटा, तो निराश होकर बहुत रोया। महाराज से राजमहल की रहस्यभरी राजकीय बातें भी वह न सीख सका, इसका उसे बहुत दुख हुआ।
हेमन्त के पिता चम्पावत का बहुत लम्बा-चौड़ा साम्राज्य था।
समय बीता। धीरे-धीरे राजकुमार हेमन्त बड़ा होने लगा। महारानी फूली न समाती। देवदासियाँ राजकुमार को झुला-झुलाकर खुद मस्ती से झूला झूलतीं।
महाराज चम्पावत अत्यन्त वृद्ध हो चले थे। एक दिन जब उन्हें लगा कि अब वह अधिक जीवन नहीं जी सकते तो उन्होंने राजकुमार को पास बुलाया और प्रेम से कहा- ‘‘बेटा ! अब मैं दूसरे लोक चला जाऊँगा। तुम अभी छोटे हो। सभी से न्याय और प्रेम का व्यवहार करना। हमारे राज्य में कभी भी प्रजा दुखी नहीं रही.....प्रजा भगवान का रूप होती है। कभी राज्य में संकट पड़े तो फूलों की देवी का ध्यान करना.....।’’
‘‘पिताजी ! मैं छोटा नहीं हूँ....मैं तो चम्पा प्रदेश का राजकुमार हूँ.....आप निश्चिन्त रहें....देवदासियों और स्वर्णपरियों का बहुत बड़ा समूह सदा मेरे साथ रहता है......मैं कभी भी महाराज के आचरणों का उल्लंघन नहीं कर सकता....।’’
एक दिन राजकुमार शिकार करने जंगल गया तो रास्ता भटक गया। कई दिनों तक राजमहल न लौट सका। इधर महाराज चम्पावत स्वर्ग सिधार गए। हेमन्त लौटा, तो निराश होकर बहुत रोया। महाराज से राजमहल की रहस्यभरी राजकीय बातें भी वह न सीख सका, इसका उसे बहुत दुख हुआ।
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